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Tuesday, June 1, 2021

UPPSC : अभ्यर्थियों की मांग- कोविड काल में बदले जाएं सफलता के मानक

UPPSC : अभ्यर्थियों की मांग- कोविड काल में बदले जाएं सफलता के मानक

प्रारंभिक परीक्षा में पदों की संख्या के मुकाबले 13 गुना की जगह, 10 फीसदी अभ्यर्थियों को सफल घोषित किए जाने की मांग

प्रतियोगियों ने कहा, सफलता के मानक को लेकर स्थायी समाधान जरूरी, पदों की संख्या लगातार कम होने से बढ़ी चुनौती

प्रतियोगी छात्र चाहते हैं कि उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (यूपीपीएससी) कोविड काल में सफलता के मानक बदले। पूर्व में प्रारंभिक परीक्षा में पदों की संख्या के मुकाबले 18 गुना और मुख्य परीक्षा में तीन गुना अभ्यर्थियों को सफल घोषित किया जाता था, लेकिन कुछ वर्षों से यह मानक क्रमश: 13 एवं दो गुना कर दिया गया। इससे प्रारंभिक परीक्षा में ही बड़ी संख्या में अभ्यर्थी छंटकर बाहर हो जा रहे हैं। प्रतियोगी छात्र अब इसका स्थायी समाधान चाहते हैं। न केवल कोविड काल, बल्कि हमेशा के लिए कोई ऐसा फार्मूला लागू किया जाए, जिससे छात्रों को राहत मिल सके। वे मांग कर रहे हैं कि प्रारंभिक परीक्षा में पदों की संख्या के मुकाबले 13 गुना अभ्यर्थियों की जगह परीक्षा में शामिल होने वाले कुल अभ्यर्थियों में से 10 फीसदी को सफल घोषित किया जाए।


कोविड का प्रभाव लगातार दो साल से बना हुआ है। कोविड की दूसरी लहर में बड़ी संख्या में प्रतियोगी छात्र और उनके परिवार के लोग संक्रमित हुए। कई ने अपनी जान तक गंवा दी। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियां भी पूरी तरह से प्रभावित रहीं। कोविड से लड़ाई लड़ने के बाद उनकी बड़ी चुनौती प्रतियोगी परीक्षाएं हैं, जिनमें सफलता के मानक बदले जाने से स्पर्धा और कठिन हो गई है। वर्ष 2019 से पहले तक प्रारंभिक परीक्षा में पदों की संख्या के मुकाबले 18 गुना और मुख्य परीक्षा में तीन गुना अभ्यर्थियों को सफल घोषित किया जाता था, लेकिन 2019 से यह मानक बदल दिया गया और इससे स्पर्धा कठिन हो गई। अब प्रारंभिक परीक्षा में पदों की संख्या के मुकाबले 13 गुना और मुख्य परीक्षा में दो गुना अभ्यर्थियों को सफल घोषित किया जा रहा है।

प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति के अध्यक्ष अवनीश पांडेय का कहना है कि भर्तियों में पदों की संख्या लगातार घट रही है और आवेदन करने वाले अभ्यर्थियों की संख्या बढ़ रही है। ऐसे में भर्ती परीक्षाओं में शामिल होने वाले अभ्यर्थियों के लिए चयन के अवसर भी लगातार कम हो रहे हैं। अब इस समस्या के स्थायी समाधान की जरूरत है। कोविड काल में समस्या और विकराल हो गई है। उदाहरण के तौर पर पीसीएस-2021 को ही देखा जा सकता है, जिसमें पदों की संख्या 538 है और आवेदन करने वालों की संख्या छह लाख 91 हजार 173 है। यानी एक पद पर 1285 दावेदार हैं।

सफलता के मानक बदलने से अब प्रारंभिक परीक्षा तकरीबन 6994 सफल घोषित किए जाएंगे और मुख्य परीक्षा में  इसमें से महज 1076 अभ्यर्थियों को इंटरव्यू के लिए सफल घोषित किया जाएगा। कोविड से प्रभावित हजारों अभ्यर्थियों के लिए इन परिस्थितियों में परीक्षा देना बड़ी चुनौती होगी और हजारों योग्य अभ्यर्थी प्रारंभिक परीक्षा में छंटकर बाहर हो जाएंगे। अवनीश के अनुसार प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति ने शासन और आयोग को प्रस्ताव भेजा है कि अगर प्रारंभिक परीक्षा में शामिल होने वाले कुल अभ्यर्थियों में से दस फीसदी को मुख्य परीक्षा के लिए क्वालीफाई कराया जाए और मुख्य परीक्षा में पूर्व की भांति पदों की संख्या के मुकाबले तीन गुना अभ्यर्थियों को इंटरव्यू के लिए सफल घोषित किया जाए तो समस्या का स्थायी समाधान हो सकता है। कई राज्यों में यही व्यवस्था लागू है। ऐसे में पदों के घटने या बढ़ने से कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा और सफलता के मानक को लेकर भी विवाद नहीं रह जाएगा। शासन और आयोग को इस पर गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए।


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