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Saturday, January 6, 2018

UPPSC : भर्तियों की जांच में पल-पल बदलती रही सीबीआई,  पहले जांच से इन्कार, फिर संस्तुति का पत्र न मिलने का दावा, अंत में शुरू की जांच

■  आयोग के अफसरों से लेकर सूबे के अफसरों की लॉबी जांच रुकवाने में रही सक्रिय


इलाहाबाद  :  उप्र लोकसेवा आयोग की भर्तियों की सीबीआइ जांच को लेकर इन दिनों जिस तरह की उठापटक मची है, 17 बरस पहले भी ठीक ऐसी ही हलचल रही। दोनों में अंतर में सिर्फ इतना है कि उस समय सीबीआइ ही पल-पल अपना स्टैंड बदल रही थी। वहीं, आयोग के अफसरों से लेकर सूबे के अहम अफसरों की लॉबी जांच रुकवाने में जुटी थी। इसीलिए उसका नतीजा सिफर रहा। जबकि इस समय जांच शुरू होने से पहले उसे चुनौती दी गई है। 



आयोग की पीसीएस 1985 के चयन में व्यापक धांधली का मुद्दा गूंजने पर नौ मई 2003 को प्रदेश सरकार ने सीबीआइ जांच की संस्तुति कर दी। 14 महीने तक प्रकरण ठंडे बस्ते में रहा। 13 सितंबर 2004 को सीबीआइ के एआइजी अनुराग गर्ग ने पत्र भेजकर कहा कि आयोग व उसके कर्मचारी उसके परिक्षेत्र में नहीं आते इसलिए जांच संभव नहीं है। इस पर जांच की मांग कर रहे भाजपा एमएलसी डा. यज्ञदत्त शर्मा ने 28 नवंबर 2004 को सीबीआइ को पत्र लिखा कि पंजाब लोकसेवा आयोग की जांच सीबीआइ ने की है और वहां के अध्यक्ष की गिरफ्तारी भी हुई है, तब उप्र लोकसेवा आयोग उसके परिक्षेत्र में कैसे नहीं आता यह समझ से परे है। 




इस पर सीबीआइ अफसर गर्ग ने आठ दिसंबर 2004 को जवाबी पत्र में लिखा कि राज्य सरकार की ओर से जांच कराने की संस्तुति का कोई पत्र सीबीआइ को नहीं मिला है। उन्होंने लिखा कि पंजाब लोकसेवा आयोग की जांच सीबीआइ ने नहीं की है, बल्कि पंजाब के विजिलेंस विभाग ने कार्रवाई की है। इस पर 20 जनवरी 2005 को भाजपा एमएलसी ने फिर सीबीआइ को लिखा कि राज्य सरकार की ओर से विधान परिषद में कार्य स्थगन प्रस्ताव के जवाब में नेता सदन अहमद हसन ने जांच सीबीआइ को सौंपने का वक्तव्य दिया है। इसलिए कार्यालय में अभिलेखों की छानबीन करा ली जाए। उन्होंने लिखा कि पंजाब आयोग के चेयरमैन की जांच विजिलेंस कर सकती है तब यूपी के आयोग की जांच सीबीआइ क्यों नहीं कर सकती? 



भाजपा एमएलसी ने लिखा कि आयोग की नीति या लोकसेवा आयोग के विरुद्ध जांच नहीं होनी है, बल्कि उन अधिकारियों के विरुद्ध जांच होनी है जिनके कारण छल-छद्म व तिकड़म के आधार पर कम मेरिट के लोगों का चयन हुआ और उच्च मेरिट के लोग छोड़े गए। झूठा शपथपत्र देने वाले व चयनित अधिकारी भ्रष्टाचार में किस तरह सम्मिलित हैं यह जांच का विषय है। 



इसके बाद सीबीआइ जवाबी पत्र न भेजकर जांच में जुट गई। इसका रहस्योद्घाटन खुद आयोग के तत्कालीन सचिव डा. जेबी सिन्हा ने 22 जुलाई 2005 को विशेष सचिव कार्मिक को भेजे पत्र में किया है। इसमें लिखा कि चार जनवरी 2005 को सीबीआइ के सबइंस्पेक्टर ने आयोग कार्यालय से संपर्क किया। 1985 पीसीएस की सभी वांछित सूचनाएं व अभिलेख मांगे। आयोग ने 11 फरवरी 2005 को ही उन्हें उपलब्ध करा दिया है। उसके बाद जांच की कार्रवाई की कोई सूचना नहीं है।


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