नेशनल कमीशन फॉर इंडियन सिस्टम ऑफ मेडिसिन के नीतिगत फैसले के तहत हुआ अहम बदलाव
लखनऊ। संस्कृत विद्यालयों में अब सिर्फ संस्कृत की पढ़ाई ही नहीं होगी। इन विद्यालयों में अब आयुर्वेद पर आधारित प्री-कोर्स का संचालन भी किया जाएगा। इसमें आयुर्वेद की पढ़ाई भी कराई जाएगी। इसके लिए नेशनल कमीशन फॉर इंडियन सिस्टम ऑफ मेडिसिन ने नीतिगत बदलाव किया है। इसके बाद गोमतीनगर स्थित केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के लखनऊ परिसर में आयुष मंत्रालय के साथ मिलकर कोर्स संचालित करने की तैयारी शुरू कर दी गई है।
विश्वविद्यालय के इनोवेटिव कोर्स कोआर्डिनेटर प्रो. पवन दीक्षित ने बताया कि आयुष मंत्रालय के साथ आयुर्वेद के प्री-कोर्स संचालित करने के लिए एमओयू भी हुआ है।
इसका मकसद आयुर्वेद की पढ़ाई को और बेहतर बनाना है। प्री- आयुर्वेद कोर्स में दाखिला 10वीं के बाद लिया जाएगा। इस दौरान विद्यार्थी को संस्कृत के साथ ही आयुर्वेद की बुनियादी जानकारी और विज्ञान के जरूरी अध्याय पढ़ाए जाएंगे। दो साल के इस पाठ्यक्रम के बाद नीट के माध्यम से इनको बीएएमएस में दाखिला मिल सकेगा। इसके लिए अभी विस्तृत दिशा निर्देश जारी किए जाएंगे।
संस्कृत में हैं आयुर्वेद के ग्रंथ, विद्यार्थियों को मिलेगा लाभ
प्रो. पवन दीक्षित के मुताबिक, आयुर्वेद का अपेक्षा के अनुसार विकसित न होने के पीछे कई व्यावहारिक कारण हैं। आयुर्वेद के सभी प्रमुख ग्रंथ संस्कृत में हैं। नीट के माध्यम से जो विद्यार्थी बीएएमएस में दाखिला लेते हैं, उनको संस्कृत नहीं आती है। ऐसे में वे आयुर्वेद के हिंदी या अंग्रेजी में उपलब्ध कुछ ग्रंथों का अध्ययन ही कर पाते हैं।
दूसरी ओर संस्कृत में आयुर्वेद के ग्रंथों का भंडार है। इनके अध्ययन और शोध से आयुर्वेद व रोगी, दोनों को फायदा होगा। इसको ध्यान में रखते हुए यह नीतिगत बदलाव हुआ है। इस बदलाव की वजह से आयुर्वेद के ग्रंथों का अध्ययन करने में सक्षम विद्यार्थी आयुर्वेद की पढ़ाई कर सकेंगे। जब विद्यार्थी को संस्कृत आती होगी तो वह आयुर्वेद में शोध भी कर सकेगा। इस तरह से इस भारतीय चिकित्सा पद्धति का विकास होगा।
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