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Friday, October 13, 2023

विधान परिषद भर्ती मामले की सीबीआई जांच पर रोक, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ याचिका पर अंतरिम आदेश पारित किया

विधान परिषद भर्ती मामले की सीबीआई जांच पर रोक,  सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ याचिका पर अंतरिम आदेश पारित किया


नई दिल्ली । उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश विधान परिषद में कर्मचारियों की नियुक्ति में कथित धांधली की सीबीआई जांच कराने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश पर फिलहाल रोक लगा दी है।


शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ विधान परिषद की ओर से दाखिल विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) पर विचार करते हुए यह अंतरिम आदेश पारित किया है। याचिका में उच्च न्यायालय द्वारा  सितंबर में इस मामले की जांच सीबीआई से कराने के फैसले को चुनौती दी गई है।


 न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय और संजय करोल की पीठ ने इसके साथ ही विधान परिषद की याचिका पर प्रतिवादी को नोटिस जारी कर चार सप्ताह के भीतर अपना पक्ष रखने का आदेश दिया है।


 इससे पहले, यूपी विधान परिषद की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने पीठ को बताया कि विधान परिषद में स्टेनोग्राफर व अन्य रिक्तियों को भरने के लिए संविधान के अनुच्छेद 187 के तहत नियम और प्रावधान तय किए गए।



दस्तावेज देने में आनाकानी के बाद विधान परिषद सचिवालय पहुंची सीबीआई

अधिकारियों के छुट्टी पर होने का बहाना बनाकर नहीं दे रहे थे दस्तावेज

अधिकारियों से मिलकर भर्तियों से जुड़े दस्तावेज मुहैया कराने को कहा



लखनऊ। हाईकोर्ट के आदेश पर विधानसभा और विधान परिषद सचिवालय में हुई भर्तियों में फर्जीवाड़े की जांच कर रही सीबीआई की टीम ने सोमवार को विधान परिषद सचिवालय जाकर प्रमुख सचिव राजेश सिंह से मिलकर जल्द दस्तावेज मुहैया कराने को कहा। सूत्रों के मुताबिक सीबीआई की टीम को कई दस्तावेज सौंपे गये हैं, शेष दस्तावेज देने के लिए तीन दिन का समय दिया गया है।


बता दें कि विधान सभा और विधान परिषद सचिवालय में हुई भर्तियों की जांच करने के लिए सीबीआई ने 22 सितंबर को प्रारंभिक जांच (पीई) दर्ज की थी। तत्पश्चात दोनों सचिवालय के प्रमुख सचिव से भर्तियों से जुड़े दस्तावेज भी मांगे थे। सीबीआई की एंटी करप्शन ब्रांच ने चयनित अभ्यर्थियों के शैक्षणिक दस्तावेज, परीक्षा की ओएमआर शीट, परीक्षा कराने वाली एजेंसी के चयन की प्रक्रिया शासनादेश भर्तियों के लिए जारी किये गये विज्ञापन समेत कई बिंदुओं पर जानकारी मांगी थी। 


सूत्रों के मुताबिक विधान परिषद सचिवालय के अधिकारी दस्तावेज देने में लगातार आनाकानी कर रहे थे। कभी अधिकारियों के अवकाश पर होने, तो कभी बीमार होने का बहाना बनाकर टरकाया जा रहा था। इसी वजह से सोमवार को सीबीआई की चार सदस्यीय टीम ने विधान भवन स्थित विधान परिषद सचिवालय जाकर अधिकारियों से मुलाकात की और उन्हें जल्द सारे दस्तावेज मुहैया कराने को कहा है।



हाईकोर्ट ने भर्तियों की सीबीआई जांच न कराने की मांग ठुकराई, विधानसभा और विधान परिषद की पिछली भर्तियों में हुई गड़बड़ी का मामला

विधान परिषद को हाई कोर्ट से झटका

हाईकोर्ट के किसी सेवानिवृत जब से जांच कराने की मांग भी रिजेक्ट की गई

 
 लखनऊ ।  इलाहाबाद कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने भा और विधान परिषद में हुई भर्तियों की जांच सीबीआई से कराने का आदेश वापस लेने से इन्कार कर दिया है। कोर्ट ने विधान परिषद की ओर से दाखिल की गई रिव्यू अर्जी को खारिज करते हुए कहा कि अर्जी में ऐसा कोई आधार नहीं है, जिसके कारण आदेश वापस लिया जाए। कोर्ट के आदेश पर इन भर्तियों की प्रारंभिक जांच के लिए सीबीआई पहले ही प्राथमिक स दर्ज कर चुकी है।


यह आदेश जस्टिस एजार मसूदी और जस्टिस औमप्रकाश शुक्ला की पीठ ने विधान परिषद की और से अधिवक्ता आकांक्ष दुबे द्वारा खिल अर्जी पर पारित किया। अर्जी में हाई को वापस लेने की मांग की गई थी। विधान परिषद की और से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता जेएन माथुर यदि परिषद की सुनवाई का पर्याप्त अवसर दिया गया होता कोर्ट के समने सरे दस्तावेज देता जिससे सीबीआइ की जरूरत न पढ़ती।


माथुर का था कि परिषद सीबी के सामने जाकर अपनी बात नहीं कहना बहती है यह विदित है कि सीबीआइ एक पीछे पड़ने वाली एजेंसी है। माथुर काकभर्तियों में कोई अवैधनिकता या अनियमितता हुई है जी कोर्ट स्वयं ही बेहतर सुनवाई कर सकती है।


वहीं इस केस के लिए राज्य सरकार की और से विशेष रूप से आबद्ध वरिष्ठ अधिवक्ता संप दीक्षित का कहना था कि बेहतर हो कि कोर्ट इस मामले की जांच के लिए हाई कोर्ट के किसी रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन कर दे। कोर्ट ने इसे भी नहीं माना।


कोर्ट ने ली चालीस के बाद कहा कि विधान परिषद ने ऐसा कोई आधार नहीं पेश किया है जिससे कहा जा सके कि 18 सितंबर के आदेश में प्रत्यक्षतः कोई गलती हो। 18 सितंबर को कोर्ट ने भर्तियों की निमता पर सवाल खड़े किए मे और सीबीको प्रारंभिक स्तर पर जांच कर नवंबर के प्रथम सप्ताह तक रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया था।



22 सितंबर 2023
ब्लैक लिस्टेड कंपनी से कराई परीक्षा फिर निकाला मनमाफिक परिणाम

परीक्षा में लोक सेवा आयोग या सचिवालय सेवा के भर्ती नियमों का पालन नहीं

कम अंक वाले भी हो गए चयनित, खुलने लगीं विधान परिषद भर्ती में धांधली की परतें


लखनऊ। विधान परिषद में भर्ती के लिए ब्लैक लिस्टेड कंपनी के जरिये परीक्षा कराई गई, फिर ऑनलाइन परीक्षा में मनमाफिक परिणाम निकालकर भर्ती की रेवड़ियां बांटी गई। इसमें परिषद के प्रमुख सचिव राजेश सिंह के बेटे अरतेंदु और अरचेंधु सिंह का भी चयन हो गया।

विधान परिषद में समीक्षा अधिकारी, सहायक समीक्षा अधिकारी, रिपोर्टर सहित कई पदों पर भर्ती के लिए हुई परीक्षा की परतें अब खुलने लगी हैं। हाईकोर्ट में दाखिल याचिका में बताया गया है कि किस तरह अयोग्य अभ्यर्थियों का चयन किया गया। परीक्षा में लोक सेवा आयोग या सचिवालय सेवा के भर्ती नियमों का पालन भी नहीं हुआ। 

याचिका में यह भी बताया गया है कि गोरखपुर के एक परीक्षा केंद्र पर सुबह 9-11 बजे तक परीक्षा होनी थी, लेकिन अभ्यर्थियों को समय से पहले ओएमआर शीट और प्रश्न पत्र दे दिए गए। आठ प्रश्न हल करने पर भी हो गया पास याचिका में बताया गया है कि अनिरुद्ध यादव नाम के अभ्यर्थी ने परीक्षा में मात्र 8 प्रश्न हल किए थे। इसके बाद भी उसे लिखित परीक्षा में सफल घोषित कर दिया गया। भर्ती के लिए नामित टीएसआर डाटा प्रोसेसिंग प्रा. लि. कंपनी के एक निदेशक की पत्नी भावना यादव का भी परिषद में समीक्षा अधिकारी के पद पर चयन हुआ है। कंपनी को परिषद के एक पूर्व सभापति का करीबी भी बताया गया है। 


तीन कोड पर नजर

भर्ती की सूची में एस सचिवालय, एसपी-एसपी सिंह, आरपी-आरपी सिंह और एआर आशीष राय का कोड चला। जानकारों का कहना है कि एस का मतलब सचिवालय के किसी कर्मचारी का रिश्तेदार था। वहीं एसपी, आरपी और एआर का मतलब उनकी सिफारिश पर भर्ती था।

सीबीआई जांच का तोड़ तलाशने में जुटे अधिकारी

सूत्रों के मुताबिक परिषद के अधिकारी सीबीआई जांच का तोड़ तलाशने में जुटे हैं। प्रमुख सचिव विधान परिषद राजेश सिंह ने विधानसभा के साथ विधायी कार्य और विधि एवं न्याय विभाग से संबंधित अधिकारियों से रायशुमारी की है।



भर्तियों की सीबीआई जांच से बेनकाब होंगे कई बड़े चेहरे, विधानसभा व परिषद में रिक्त पदों से अधिक भर्तियां


लखनऊ। विधानसभा व परिषद में 2020-21 में हुई भर्तियों की सीबीआई जांच हुई तो कई बड़े चेहरे बेनकाब होंगे। इनमें न सिर्फ रिक्त पदों से अधिक भर्तियां की गईं बल्कि नौकरी की रेवड़ियां नेताओं और अफसरों के रिश्तेदारों को भी बांटी गईं।


तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष हृदयनारायण दीक्षित के कार्यकाल में 95 पदों पर भर्ती हुई थीं। इनमें समीक्षा अधिकारी के 20, सहायक समीक्षा अधिकारी के 23, एपीएस के 22, अनुसेवक के 12, रिपोर्टर के 13 व सुरक्षा गार्ड के पांच पद शामिल थे। 


परिषद के तत्कालीन सभापति रमेश यादव के कार्यकाल में विभिन्न श्रेणी के 100 पदों पर भर्ती हुई। परिषद में हुईं भर्तियों को लेकर हाईकोर्ट में दाखिल याचिका में अनियमितता का आरोप लगाया गया है। 


याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि परिषद प्रमुख सचिव राजेश सिंह के बेटे अरतेंदु शेखर प्रताप सिंह, विधानसभा के प्रमुख सचिव के भतीजे शलभ दुबे व पुनीत दुबे को समीक्षा अधिकारी के पद पर नियुक्ति दी गई। सरकार में विशेष कार्याधिकारी रहे एक सेवानिवृत्त अधिकारी के बेटे को भी इस पद पर नियुक्त किया गया। 


विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष हृदयनारायण दीक्षित के निजी सहायक रहे पंकज मिश्रा की ओएसडी पद पर नियुक्ति पर भी सवाल उठे हैं। शासन व विधानसभा सचिवालय के अफसरों के रिश्तेदारों को भी समीक्षा अधिकारी बनाया गया है। करीब 26 कार्मिकों की नियुक्ति संदेह के दायरे में हैं। 


सीबीआई को बताएंगे कैसे हुईं भर्तियां

विधानसभा की अधिष्ठान शाखा के एक अधिकारी से जब भर्ती को लेकर बात की गई तो उन्होंने कहा कि सीबीआई के सामने चिल्ला- चिल्लाकर बताएंगे कि भर्तियां कैसे हुई।


भर्तियों की सीबीआई जांच के आदेश के बाद दोनों सदनों के दफ्तरों में बुधवार को हलचल रही। उस दौरान भर्ती हुए कार्मिकों की नौकरी पर तलवार लटक सकती है।


सुप्रीम कोर्ट से रोक भी

सर्वोच्च कोर्ट ने बीते दिनों विधानसभा व परिषद के स्तर से होने वाली भर्तियों पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने भर्तियां अब उप्र. लोक सेवा आयोग या अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के जरिये ही कराने के निर्देश दिए हैं।



विधानसभा व परिषद सचिवालय में भर्ती की होगी सीबीआई जांच
हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने मामले को जनहित याचिका के रूप दर्ज करने का दिया आदेश

2022 से 2023 के बीच भर्ती का मामला

अपील पर सुनवाई के दौरान भर्ती में धांधली का लिया स्वतः संज्ञान, छह हफ्ते में रिपोर्ट तलब


लखनऊ। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने उप्र विधानसभा और विधान परिषद सचिवालय में हाल ही में हुईं विभिन्न पदों पर भर्तियों की सीबीआई जांच का आदेश दिया है। शुरुआती जांच की रिपोर्ट छह हफ्ते में पेश करने को भी कहा है। यह आदेश न्यायमूर्ति एआर मसूदी और न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ल की खंडपीठ ने सुशील कुमार व दो अन्य की विशेष अपील के साथ विपिन कुमार सिंह की याचिका पर दिया। कोर्ट ने इस धांधली मामले का स्वतः संज्ञान लेते हुए इसे जनहित याचिका (पीआईएल) के रूप में दर्ज करने का भी आदेश दिया है।


गौरतलब है कि वर्ष 2022 से 2023 के बीच उप्र विधानसभा व विधान परिषद सचिवालय में बड़े पैमाने पर स्टाफ की भर्ती हुई थी। इसमें व्यापक धांधली का मुद्दा हाईकोर्ट के एकल पीठ के समक्ष उठाया गया था। इसमें आरोप है कि चयन प्रक्रिया में कई नियमों को दरकिनार कर बाहरी भर्ती एजेंसियों को तरजीह दी गई। इसके लिए नियमों भी मनमाना संशोधन किया गया। 


हाईकोर्ट के एकल पीठ ने इस मामले में दायर याचिका को बीते 12 अप्रैल को खारिज कर दिया था। इसके खिलाफ विशेष अपील दो न्यायाधीशों की खंडपीठ के समक्ष दाखिल की गई। इस पर सुनवाई के दौरान कथित अनियमितताओं पर स्वतः संज्ञान लेते हुए खंडपीठ ने इसकी सीबीआई जांच का आदेश दिया है। साथ ही मामले में पेश मूल रिकॉर्ड को सील कवर में रखवा दिया। कोर्ट ने पीआईएल में सहयोग के लिए अधिवक्ता डॉ. एलपी मिश्र को बतौर न्यायमित्र अधिवक्ता नियुक्त किया है।


कोर्ट ने आदेश में यह टिप्पणी भी की कि सरकारी नौकरी में भर्ती के लिए प्रतियोगिता मूल नियम है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए भर्ती एजेंसियों की विश्वसनीयता बहुत ही जरूरी है। कोर्ट ने विशेष अपील और जनहित याचिका को नवंबर के पहले हफ्ते में सूचीबद्ध करने का आदेश भी दिया है।


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