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Saturday, May 12, 2018

उप्र लोकसेवा आयोग की पांच साल की भर्तियों की जांच में नियुक्ति पाने वालों के साथ ही नियुक्ति देने वाले भी जद में, मची खलबली, आयोग के ‘बड़ों’ पर लटकी गिरफ्तारी की तलवार

5:40:00 PM

उप्र लोकसेवा आयोग की पांच साल की भर्तियों की जांच में नियुक्ति पाने वालों के साथ ही नियुक्ति देने वाले भी जद में आए हैं। सीबीआइ ने जिस तरह से पिछले दिनों पहली एफआइआर दर्ज की है, उससे आयोग के बड़े अफसरों में खलबली मची है। नियुक्तियों में धांधली करने वाले सारे शख्स अज्ञात में दर्ज हैं, ऐसे में इन पांच वर्षो में आयोग के अहम पदों पर रहने वालों पर गिरफ्तारी की तलवार लटक गई है। इनमें आयोग अध्यक्ष, सचिव और परीक्षा नियंत्रक के साथ ही अनुभाग अधिकारी सीधे निशाने पर होंगे। जांच अफसरों का मानना है कि इनके सहमति के बिना चयन में किसी तरह की गड़बड़ी नहीं की जा सकती है।

सीबीआइ आयोग में अप्रैल 2012 से लेकर मार्च 2017 तक की भर्तियों की जांच कर रही है। इस दौरान करीब साढ़े पांच सौ से अधिक भर्तियों को चिन्हित किया जा चुका है। जांच टीम को परीक्षा देने वाले प्रतियोगियों व आयोग के रिकॉर्डो की छानबीन में जो तथ्य मिले, उसमें 2015 पीसीएस भर्ती को निशाने पर रखा गया, क्योंकि पेपर लीक होने से लेकर चयन में गड़बड़ी के ज्यादा मामले इसी दौरान सामने आए। इसके अलावा दो अन्य भर्तियों को भी तेजी से खंगाला जा रहा है, संकेत हैं कि सीबीआइ को इसमें भी गड़बड़ियों के सुबूत मिल रहे हैं। जांच टीम ने इसी को आधार बनाकर एफआइआर दर्ज कराई है। इसके बाद आयोग के बड़े अफसर यह पता कर रहे हैं कि जांच में उनकी क्या भूमिका मिली है। भले ही सीबीआइ ने इस संबंध में पत्ते नहीं खोले नहीं खोले हैं लेकिन, जिस अवधि की जांच हो रही है। उस दौरान आयोग में तीन अध्यक्ष, नौ सचिव, चार परीक्षा नियंत्रक और 34 अनुभाग अधिकारी तैनात रहे हैं। इसके अलावा संयुक्त सचिव पद पर शासन ने लंबे समय तक नियमित अधिकारी की तैनाती नहीं की, इस पद का कार्य कार्यवाहक से ही लिया जाता रहा। ऐसे ही सचिव और परीक्षा नियंत्रकों को भी जिस तरह से बदला जाता रहा। उस पर भी जांच टीम नजरें गड़ाए है। सूत्रों की मानें तो जांच अधिकारियों का यह मानना है कि किसी भी गड़बड़ चयन में अहम पदों पर काबिज लोगांे की बिना सहमति वह संभव नहीं हैं। वहीं, पीसीएस 2015 के अफसरों से पूछताछ में भी कई अफसरों का नाम लेकर चयन की कहानी बताई गई है। संकेत है कि जांच टीम बड़े अफसरों से पूछताछ कर सकती है और आरोप सही मिलने पर उनकी गिरफ्तारी से इन्कार नहीं किया जा सकता।

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