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Tuesday, March 6, 2018

सरकारी कॉलेज से पढ़ाई पर करनी ही होगी राजकीय सेवा, यूजी व पीजी मेडिकल विद्यार्थियों से एक साल सेवा के लिए भराया जाएगा बांड

6:11:00 PM

■ सरकारी कॉलेज से पढ़ाई पर करनी ही होगी राजकीय सेवा

■ यूजी व पीजी मेडिकल विद्यार्थियों से एक साल सेवा के लिए भराया जाएगा बांड

■ राजकीय सेवा न करने पर देनी होगी एक करोड़ तक की पेनाल्टी

लखनऊ  : राजकीय मेडिकल कॉलेजों से सस्ते में पढ़ाई करके निजी क्षेत्र में ऊंची कमाई का ख्वाब देखने वालों को प्रदेश सरकार ने झटका दिया है। अब इन डॉक्टरों को पहले एक साल की अनिवार्य शासकीय सेवा करनी होगी। इसके लिए मेडिकल छात्र-छात्रओं से पढ़ाई के दौरान ही अनिवार्य सेवा का बांड भराया जाएगा।

सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी पूरी करने के लिए चिकित्सा शिक्षा विभाग के इस प्रस्ताव को योगी कैबिनेट ने मंगलवार को मंजूरी दे दी।निजी मेडिकल कॉलेजों के मुकाबले कम फीस अदा कर राजकीय मेडिकल कॉलेजों से डिग्री लेने वाले डॉक्टरों को कम से कम एक साल सरकारी अस्पतालों में रोकने के लिए चिकित्सा शिक्षा विभाग ने यह फार्मूला तैयार किया है। इसके तहत एमबीबीएस डॉक्टरों को सीएचसी-पीएचसी और एमडी एमसीएच डॉक्टरों को बड़े अस्पतालों या मेडिकल कॉलेजों में एक साल की अनिवार्य सेवा देनी होगी।

सरकार एमबीबीएस व बीडीएस के छात्रों को 10 लाख, पीजी डिप्लोमा पाठ्यक्रम के लिए 20 लाख, स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के लिए 40 लाख व सुपर स्पेशियलिटी पाठ्यक्रम के लिए एक करोड़ रुपये का बांड भरवाएगी।

यदि अभ्यर्थी एक साल की अनिवार्य सेवा नहीं करते हैं तो उन्हें बांड की रकम के अनुसार पैसा प्रदेश सरकार को देना होगा। यदि अभ्यर्थी यह धनराशि जमा नहीं करते हैं तो इसकी वसूली भू-राजस्व की तरह होगी। एमबीबीएस व बीडीएस चिकित्सकों को एक साल की सेवा के दौरान वहीं मासिक मानदेय मिलेगा जो जूनियर रेजीडेंट, सीनियर रेजीडेंट या फिर वॉक इन इंटरव्यू के जरिये भर्ती होने वाले संविदा डॉक्टरों को मिलता है।

सुपर स्पेशियलिटी चिकित्सकों को भी संविदा के आधार पर मासिक मानदेय के अलावा अन्य भत्ते अलग से दिए जाएंगे। प्रदेश में अभी सिर्फ उन पीजी अभ्यर्थियों से बॉन्ड भराया जाता है जो प्रांतीय चिकित्सा सेवा के होते हैं। इन डॉक्टरों से 10 साल के लिए बांड भराया जाता है। करार तोड़ने पर पीजी कोर्स करने वाले डॉक्टर को एक करोड़ रुपये सरकार को वापस करने पड़ते हैं। जबकि पीजी डिप्लोमा के लिए यह रकम 50 लाख रुपये है। अब यही फॉर्मूला  प्रदेश सरकार ने राजकीय मेडिकल कॉलेजों से पढ़ाई करने वाले सभी विद्यार्थियों पर लागू कर दिया है।

फीस बराबर करना भी जरूरी : पीएमएस एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ.अशोक यादव कहते हैं कि जब तक सरकारी व निजी मेडिकल कॉलेजों में फीस के बीच संतुलन नहीं होगा, डॉक्टरों की कमी दूर होना मुश्किल है। डॉ.यादव का कहना है कि जो एक करोड़ रुपये खर्च करके डॉक्टर बनेगा वह हर मरीज से एक हजार रुपये फीस तो मांगेगा ही।

■ इसलिए जरूरी है बॉन्ड
सरकारी मेडिकल कॉलेजों में पीजी कोर्स की फीस जहां करीब 40 हजार रुपये सालाना है, वहीं प्राइवेट कॉलेज में यह 10 से 40 लाख रुपये प्रतिवर्ष के बीच है। इस तरह तीन साल के पीजी कोर्स के लिए सरकारी कॉलेज में महज सवा लाख रुपये खर्च होते हैं, जबकि प्राइवेट कॉलेज में यह खर्च 30 लाख से सवा करोड़ रुपये तक हो जाता है। यह फर्क कमाई में भी है।

पीजी करने के बाद सरकारी कॉलेज में विशेषज्ञ डॉक्टर को जहां 60-65 हजार रुपये मिलते हैं, वहीं निजी क्षेत्र में शुरुआत ही लाखों रुपये से होती है। यही वजह है कि प्रदेश के सरकारी व निजी मेडिकल कॉलेजों से हर साल पास होने वाले करीब 1100 विशेषज्ञ पीजी डॉक्टरों में से 10 फीसद यानी 100 डॉक्टर भी हर साल सरकारी सेवा में नहीं आ रहे हैं।

■ नहीं बढ़े विशेषज्ञ डॉक्टर
पिछले कुछ दशकों में मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस डॉक्टरों की तो सीटें बढ़ीं, लेकिन विशेषज्ञ डॉक्टर बढ़ाने की चिंता नहीं की गई। नतीजा यह हुआ कि 1980 में 779 के मुकाबले एमबीबीएस की सीटें तो करीब पांच हजार सालाना तक पहुंच गईं, लेकिन सरकारी कॉलेजों में पीजी की सीटें तब और अब भी महज 700 ही रहीं। गनीमत रही कि इस बीच तीन दर्जन निजी मेडिकल कॉलेज अस्तित्व में आए और इनसे 400 सीटें और बढ़ गईं। फिर भी प्रति करोड़ आबादी के अनुपात में जितने विशेषज्ञ डॉक्टर 1980 में थे, वर्तमान में उसके आधे भी मौजूद नहीं है।

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