इलाहाबाद : उप्र लोकसेवा आयोग में सपा शासन में दो साल तक अध्यक्ष कार्यरत रहे अनिल यादव के मनमाने फैसले प्रशासनिक पदों के योग्य युवाओं का भविष्य तो ले डूबे, साथ ही उन युवाओं के भविष्य पर भी सवाल खड़ा कर दिया है जिन्होंने उनके करीबी होने का फायदा उठाते हुए नौकरी पाई। भर्तियों की सीबीआइ जांच में ऐसे लोगों के फंसने का अंदेशा है जिन्होंने दूसरों का हक हड़पा और आयोग की साख पर बट्टा लगाया। प्रमुख रूप से 2011 की पीसीएस परीक्षा, लोअर सबॉर्डिनेट की 2015-16 तक की परीक्षाओं, 2014 की समीक्षा अधिकारी/सहायक समीक्षा अधिकारी परीक्षा सहित सीधी भर्ती के तहत चयनित सभी पदों को लेकर पूर्व अध्यक्ष अनिल यादव प्रतियोगी छात्रों के निशाने पर रहे। दरअसल उन्होंने आरक्षण में बदलाव का मनमाना फैसला लिया, अभ्यर्थियों के परीक्षा केंद्र आवंटन में भी नियम और मानकों को ताख पर रख दिया। स्क्रीनिंग की आड़ में अपने चहेतों को अधिक अंक देकर योग्य उम्मीदवारों की अनदेखी की। इन्हीं कारनामों के चलते उप्र लोकसेवा आयोग की साख पर बट्टा लगा और भर्तियों की सीबीआइ जांच की नौबत आई।
■ सीबीआइ जांच के घेरे में वे भी आएंगे जिन्होंने दूसरों का हक हड़पा
■ अनिल यादव के कारनामों से लाभ पाने वाले युवाओं पर भी छाए संकट के बादल
जांच की हरी झंडी होने पर आयोग में तो हलचल है ही, ऐसे लोगों में भी खलबली मच गई है जिन्होंने पूर्व अध्यक्ष अनिल यादव के करीबी होने का बेजा फायदा उठाया और इस समय सरकारी सेवा में हैं। सूत्र बताते हैं कि सीबीआइ टीम आने या इसकी ओर से कोई प्राथमिकी दर्ज कराने से पहले प्रशासनिक पदों पर काबिज वे लोग गुपचुप ढंग से आयोग के संपर्क में आ गए हैं जिन्होंने पूर्व अध्यक्ष अनिल यादव को साध कर नौकरी पाई। उधर, प्रतियोगी छात्रों का कहना है कि कुछ लोग ही क्यों, पीसीएस, लोअर सबॉर्डिनेट, उत्तर प्रदेश न्यायिक सेवा सिविल जज (जूनियर डिवीजन), सहायक अभियोजन अधिकारी और समीक्षा अधिकारी/सहायक समीक्षा अधिकारी के पदों पर पहुंचे अधिकांश लोगों में खलबली मची है। कहते हैं कि जांच शुरू होने पर आयोग के तत्कालीन अधिकारी ही नहीं, सपा शासन के दौरान प्रदेश में कई उच्च पदों पर आसीन रहे बड़े अफसरों में भी बेचैनी है।
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