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Monday, December 18, 2017

यूपी लोक सेवा आयोग में साक्षात्कार में हुई मनमानी पर केंद्रित होगी सीबीआइ जांच, नियम, परंपराएं व आयोग की गोपनीयता तोड़ने के लगे गंभीर आरोप

उप्र लोकसेवा आयोग से सपा शासन के दौरान हुई भर्तियों में साक्षात्कार ही सीबीआइ जांच के पहले चक्र में आने की उम्मीद है। पीसीएस परीक्षाओं में एक जाति विशेष के अभ्यर्थियों को साक्षात्कार में मिले अंकों पर संदेह जताते हुए प्रतियोगी छात्रों ने शिकायतें भेजी थीं और आंदोलन किया था। मुख्य परीक्षा में अव्वल अभ्यर्थियों के साक्षात्कार में पिछड़ जाने और जाति विशेष के अभ्यर्थियों को सर्वाधिक अंक मिलने पर आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष डॉ. अनिल यादव विवादों के घेरे में आ गए थे। 




गौरतलब है कि आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अनिल यादव पर आरक्षण नियमावली के उल्लंघन सहित साक्षात्कार में बोर्ड के गठन से लेकर अंकों की गोपनीयता तक भंग करने के गंभीर आरोप लगे थे। प्रतियोगी छात्रों की मानें तो उस दौरान डॉ. अनिल यादव ने प्रस्ताव पारित कराया था कि अभ्यर्थी अपने नाम के आगे जाति नहीं लिखेंगे। इसके बाद परिणाम निकलने पर एक विशेष जाति के ही अभ्यर्थियों के अंक अधिक मिलने पर अन्य प्रतियोगी छात्रों ने विरोध किया तो तत्कालीन अध्यक्ष ने समिति की बैठक करके दूसरा प्रस्ताव पारित किया, जिसमें परिणाम ऑनलाइन दिखने में ‘ओटीपी’ यानी वन टाइम पासवर्ड की व्यवस्था कर दी। जिसके तहत अभ्यर्थी सिर्फ अपने पासवर्ड से अपना रिजल्ट ही देख सकते थे। 




इसके बाद भी जब प्रतियोगी छात्रों ने अपने सूत्रों से पता लगाकर पुन: एक जाति विशेष के अभ्यर्थियों को अधिक अंक दिया जाना पाया तो विरोध के स्वर तेज हुए। तत्कालीन अध्यक्ष ने इसकी भी काट निकाली और एक तीसरा प्रस्ताव भी पास कराया कि परिणाम अभ्यर्थियों के नाम से नहीं बल्कि रोल नंबर के आधार पर ही जारी किए जाएंगे। 



आरोप है कि तत्कालीन अध्यक्ष ने साक्षात्कार के लिए बोर्ड गठन और अंक मिलने में भी आयोग की सभी गोपनीयता और परंपराएं भंग कर दीं। पुरानी परंपरा थी कि साक्षात्कार के लिए बोर्ड कौन सा बैठेगा इसकी जानकारी समिति के किसी भी सदस्य या चेयरमैन को नहीं रहती थी। न ही प्रतियोगी छात्रों को हो पाती थी। साक्षात्कार के ही दिन लॉटरी सिस्टम से बोर्ड का पैनल बनाया जाता था, छात्र जब गैलरी में पहुंचते थे तब ही उन्हें मालूम हो पाता था कि बोर्ड में कौन अधिकारी है। इसके अलावा साक्षात्कार होने के बाद बोर्ड के चेयरमैन अभ्यर्थी के अंक लिखकर एक लिफाफे में सील करके उसे सचिव के पास भेजते थे ताकि अंकों की गोपनीयता कहीं भंग न होने पाए। 



आरोप है कि इन सभी परंपरा को तोड़ते हुए तत्कालीन अध्यक्ष ने अपने कार्यालय कक्ष से ही सभी व्यवस्थाएं निर्धारित कीं और साक्षात्कार में मिलने वाले अंकों को भी अपने सामने ही सील करवाया। प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति के मीडिया प्रभारी अवनीश पांडेय की मानें तो यह सभी आरोप साक्ष्यों सहित उच्च न्यायालय में भी प्रस्तुत किए गए हैं जिन पर सुनवाई अभी लंबित है।


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