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Saturday, December 23, 2017

UPPSC : दूसरे राज्यों को नीतियां देने वाला खुद पिछड़ा, यूपी पीसीएस (जे) की मुख्य परीक्षा में भाषा को लेकर प्रतियोगी छात्रों के निशाने पर आयोग

उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (यूपीपीएससी) की नीतियां कभी इतनी अच्छी और प्रभावी थीं कि दूसरे राज्यों के आयोगों ने इसे आत्मसात किया था। अन्य राज्य उन नीतियों पर अब भी अमल कर रहे हैं और उप्र लोक सेवा आयोग पिछड़ रहा है। यूपी पीसीएस जे की मुख्य परीक्षा में भाषा को लेकर प्रतियोगी छात्रों के निशाने पर आए उप्र लोक सेवा आयोग से अन्य राज्य के आयोग आगे हैं क्योंकि वहां अंग्रेजी भाषा के साथ स्थानीय भाषा में भी प्रश्न पत्र बनते हैं।



न्यायिक सेवा की परीक्षा में लगातार शामिल हो रहे छात्र छात्रओं की मानें तो बिहार न्यायिक सेवा में अंग्रेजी का 100 अंकों का पेपर तो बनता ही है उसके साथ सामान्य हंिदूी का भी 100 अंकों का प्रश्न पत्र होता है। झारखंड न्यायिक सेवा परीक्षा में हंिदूी और अंग्रेजी के निबंध, संक्षेपण लेखन अनुवाद और व्याख्या का 100 अंकों का प्रश्न पत्र होता है। राजस्थान न्यायिक सेवा में हंिदूी और अंग्रेजी निबंध का 50 अंक का प्रश्न पत्र होता है। हरियाणा न्यायिक सेवा में अंग्रेजी का 200 अंकों का और हंिदूी का 100 अंक का प्रश्न पत्र तथा पंजाब न्यायिक सेवा परीक्षा में 200 अंक के अंग्रेजी के पेपर के अलावा 150 अंकों का पंजाबी का प्रश्न पत्र होता है। 



उप्र लोक सेवा आयोग के 2000 में अध्यक्ष रहे प्रो. के बी पांडेय के अनुसार उस दौरान इस आयोग की नीतियां काफी प्रभावी थीं। कई राज्यों ने यहां की नीतियों की मांग की थी। उनकी मांग पूरी भी की गई थी। विभिन्न राज्य उन नीतियों का पालन भी कर रहे हैं। 1वहीं, पीसीएस जे परीक्षा में केवल अंग्रेजी विषय में प्रश्न पत्र बनाकर उप्र लोक सेवा आयोग हंिदूी भाषी छात्र छात्रओं से भेदभाव कर रहा है। प्रतियोगी छात्रों की मानें तो साक्षात्कार आदि में भी अंग्रेजी भाषी अभ्यर्थियों की बोलचाल से साक्षात्कार बोर्ड उन्हें ही अधिक तवज्जो देता है जबकि परीक्षा उत्तीर्ण करने की काबिलियत हंिदूी भाषी अभ्यर्थी भी रखते हैं, इसके बावजूद भाषाई भेदभाव उन्हें आगे बढ़ने से वंचित कर देता है।


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