परीक्षाओं को लेकर मुकदमों में उलझा आयोग, 6 साल में मुकदमों पर ढाई करोड़ खर्च, RTI के तहत आयोग ने मुकदमों का अन्य विवरण देने से किया इंकार।
इलाहाबाद : उप्र लोकसेवा आयोग के खिलाफ अभ्यर्थियों की ओर से हाईकोर्ट व शीर्ष कोर्ट में दाखिल होने वाले मुकदमों की संख्या लगातार बढ़ रही है। अपनी गलतियां सुधारने की बजाय आयोग भी शीर्ष कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दाखिल कर रहा है। पांच साल में आयोग की ओर से न्यायिक कार्यो पर 2,36,58,601 रुपये खर्च का ब्योरा ही यह बताने के लिए काफी है कि साफ सुथरी परीक्षाएं कराने और गलतियों में सुधार करने की बजाय आयोग किस र्ढे पर चल रहा है।
जन सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के तहत मांगी गई सूचना के जवाब में आयोग ने कहा है कि एक अप्रैल, 2012 से 23 मई, 2018 तक विधिक कार्य में कुल 2,36,58,601 रुपये व्यय हुए हैं। इसमें वित्तीय साल 2013-14 में 29,28000 रुपये, वित्तीय साल 2014-15 में 46,96000 और वित्तीय साल 2015-16 में 33,69000 यानी तीन साल में ही कुल 1,10,63000 रुपये खर्च हुए हैं। यह सूचना प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति के मीडिया प्रभारी अवनीश पांडेय की ओर आरटीआइ के तहत मांगी गई सूचना के आधार पर आयोग के अनुसचिव/जन सूचना अधिकारी सतीश चंद्र मिश्र ने 29 मई, 2018 को दी है। दो अप्रैल, 2013 से आठ दिसंबर, 2015 के बीच 406 मुकदमे हाईकोर्ट में व 27 मुकदमे शीर्ष कोर्ट में लंबित रहे।
आयोग ने एक अप्रैल, 2012 से 29 मई, 2018 के बीच कुल लंबित मुकदमों की संख्या बताने से इन्कार किया। सूत्र बताते हैं कि पिछले दो साल में आयोग के खिलाफ बड़ी संख्या में अभ्यर्थियों ने याचिकाएं इलाहाबाद हाईकोर्ट में दाखिल की हैं। जिसमें ताजा मामला पीसीएस परीक्षा 2017 और एलटी ग्रेड शिक्षक भर्ती 2018 में खामियों को लेकर याचिकाएं दाखिल करने को लेकर है। पीसीएस 2016 का मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट से निस्तारित होने के बाद शीर्ष कोर्ट में विचाराधीन है। विशेषज्ञों के चयन में लगातार गलती कर रहे आयोग का अपनी खामियों से ही नाता नहीं टूट पा रहा है, जबकि अपने हित से खिलवाड़ होते देख अभ्यर्थी कोई और रास्ता न देख कोर्ट पहुंच रहे हैं। फिर भी आयोग के रवैए में किसी प्रकार का बदलाव अब तक नहीं हो सका है।
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