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Sunday, April 15, 2018

सीबीआइ के बुलावे पर चयनित अभ्यर्थियों की ‘आनाकानी’, ढाई महीने में सीबीआइ चली अढ़ाई कोस

■ आज कैंप कार्यालय पर पीसीएस 2015 के चयनितों से होनी है पूछताछ

■ समन भेजा गया है 25 चयनितों को आठ-10 के ही आने की संभावना


इलाहाबाद  : सीबीआइ से समन मिलने के बाद पीसीएस 2015 के चयनित कई अभ्यर्थियों ने सोमवार को इलाहाबाद आने में की है। किसी ने अपने जिलाधिकारी से अनुमति को जरूरी बताया है तो किसी ने पहले से विभिन्न सरकारी कामकाज में व्यस्तता बताकर खुद से पूछताछ टालने की कोशिश की है। जिन 25 चयनितों को सीबीआइ ने समन जारी किया है उन्हें ई-मेल पर पूछताछ की सूचना दी गई है। हालांकि सीबीआइ को भी यह लगने लगा है कि 25 नहीं तो 8-10 चयनित ही आएंगे लेकिन, जिन अभ्यर्थियों ने विभिन्न प्रकार के बहाने बनाए हैं उन पर शक गहराने लगा है।



इलाहाबाद के गोविंदपुर स्थित सीबीआइ के कैंप कार्यालय पर सोमवार को माहौल अन्य दिनों की अपेक्षा कुछ अलग होगा। एसपी सीबीआइ राजीव रंजन प्रदेश के विभिन्न जिलों में तैनात उन अधिकारियों से पूछताछ करेंगे जिनका चयन उप्र लोक सेवा आयोग की ओर से कराई गई पीसीएस परीक्षा 2015 में हुआ है। जिन 25 अधिकारियों को ई-मेल व उनके निजी पते पर समन भेजा गया है उनमें कई एसडीएम व अन्य पदों पर भी तैनात अधिकारी हैं। बुलाए गए कुछ चयनितों के विरुद्ध सीबीआइ के पास ऐसे सुबूत और अभिलेखीय रिकार्ड हैं जो यह बताते हैं कि उनका चयन नियमों के विपरीत हुआ। यही रिकार्ड सामने रखकर उनसे पूछताछ होनी है। इसके अलावा सीबीआइ के पास यह भी पुख्ता जानकारी है कि कई अभ्यर्थी उप्र लोक सेवा आयोग में तत्कालीन व वर्तमान में भी तैनात अफसरों से रिश्तेदारी का अनुचित लाभ उठाकर योग्य उम्मीदवारों का हक डकार गए।




सीबीआइ के सूत्र बताते हैं कि बुलाए गए 25 चयनितों में कुछ ऐसे भी अधिकारी हैं जिन पर अनुचित तरीके से लाभ पाने का संदेह नहीं है लेकिन, उनसे भी आयोग का भ्रष्टाचार खंगालने में मदद मिल सकती है। उधर सीबीआइ का सामना करने से बचने के लिए चयनित अभ्यर्थियों ने कई तरह के बहाने बनाए हैं। किसी ने कहा है कि उन्हें सीधे समन भेजने की बजाए उनकी तैनाती वाले जिलों के जिलाधिकारी के माध्यम से बुलाया जाना चाहिए। वहीं कई अन्य ने सोमवार 16 अप्रैल को पहले से तय सरकारी कार्यक्रमों में ड्यूटी लगी होने का बहाना बनाया।



इलाहाबाद :  नौ दिन चले अढ़ाई कोस की कहावत तो आपने सुनी होगी। उप्र लोक सेवा आयोग से हुई भर्तियों को खंगाल रही सीबीआइ ढाई महीने में भी अढ़ाई कोस ही चल सकी। परीक्षाओं में आयोग की मनमानी का खामियाजा भुगतने वाले अभ्यर्थियों से शिकायतें तो खूब मिलीं, सिलसिला अब भी जारी है। तीन चरणों में सीबीआइ ने आयोग से कंप्यूटर रिकार्ड, मूल उत्तर पुस्तिकाएं व पूर्व अध्यक्ष डा. अनिल यादव के कार्यकाल में हुई बैठकों में पारित प्रस्तावों के रिकार्ड तक हासिल कर लिए लेकिन, आयोग को कलंकित करने वाले असल गुनाहगारों तक ढाई महीने में कानून के हाथ नहीं पहुंच सके हैं।


उप्र लोक सेवा आयोग से एक अप्रैल 2012 से 31 मार्च 2017 के बीच हुई सभी भर्तियों की जांच के लिए सीबीआइ का पहला कदम 31 जनवरी 2018 को आयोग में पड़ा था। शासन की संस्तुति पर साढ़े पांच सौ से अधिक भर्तियों की जांच शुरू हुई। एक सप्ताह बाद ही सीबीआइ ने इलाहाबाद में ही कैंप कार्यालय स्थापित कर दिया ताकि आयोग की मनमानी का खामियाजा भुगतने वाले अभ्यर्थी वहां आकर अपनी समस्या आसानी से बता सकें। कैंप कार्यालय पर सीबीआइ को सैकड़ों शिकायतें मिलीं जिनमें कई अभ्यर्थियों ने भर्तियों में भ्रष्टाचार के सबूत तक दिए। उधर सीबीआइ ने भी आयोग के गोपन और परीक्षा विभाग के सभी कंप्यूटरों से डाटा को इमेजिंग स्कैन कर लिया।


आयोग में पूछताछ भी हुई। सीबीआइ सूत्रों की मानें तो भर्तियों में भ्रष्टाचार के असल गुनाहगारों की काली करतूतें भी पता चल चुकी हैं। पूर्व परीक्षा समिति के सदस्यों और पूर्व अध्यक्ष डा. अनिल यादव, तमाम सफेदपोश व सत्ता के करीब रहने वाले दलालों के भी संलिप्त होने के पर्याप्त सबूत हाथ लग चुके हैं। सूत्र बताते हैं कि पीसीएस 2015, लोअर सबऑर्डिनेट परीक्षा 2013 में अनुचित तरीके से लाभांवित अभ्यर्थियों का ब्यौरा भी जुटा लिया गया है। इसके बावजूद अब तक सीबीआइ न तो प्राथमिकी दर्ज कर सकी है और न ही घोषित तौर पर किसी की गिरफ्तारी हुई।



अब तक सबूत ही जुटाने और कोई बड़ी कार्रवाई न होने के बावत सीबीआइ अफसरों का कहना हैं कि किसी को बख्शा नहीं जाएगा। पूर्व अध्यक्ष डा. अनिल यादव की इस भ्रष्टाचार में संलिप्तता पता लगने के बावजूद अब तक उनसे पूछताछ भी शुरू न होने पर सीबीआइ का सिर्फ यही कहना है कि बच कर कहां जाएंगे।

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