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Thursday, December 21, 2017

जजों की कमी पूरी होने में यूपी लोक सेवा आयोग ही बना रोड़ा, पीसीएस (जे) में आवेदन के सीमित अवसर अवसर  और अनियमित परीक्षा आयोजन से सिस्टम गड़बड़ाया

■  परीक्षा नियमित भी नहीं

यूपी पीसीएस जे. की परीक्षा कराने में उप्र लोकसेवा आयोग की ओर से अनदेखी की जा रही है। आयोग ने 2000 से 2006 तक में केवल तीन सत्रों में परीक्षाएं कराईं। न्यायालय ने आदेश दिया था कि जब तक सभी रिक्तियां पूरी नहीं हो जातीं हैं तब तक परीक्षा नियमित कराई जाए। 2012 में उच्च न्यायालय से नियमित परीक्षा कराने का आदेश होने पर आयोग ने 2012, 2013, 2015, 2016 में परीक्षा कराई। इस बीच 2014 और 2017 का सत्र शून्य चला गया।



■ यूपीएससी का पैटर्न अपना रहे उप्र लोकसेवा आयोग की दोहरी मानसिकता

इलाहाबाद : देश व प्रदेश में लाखों मुकदमों का बढ़ता बोझ और ऊपर से जजों की भारी कमी। हाईकोर्ट ही नहीं, निचली अदालतों में भी जजों का टोटा है। ऐसे में न्यायिक सेवा में जाने के इच्छुक प्रतियोगी छात्र-छात्रओं को उप्र लोकसेवा आयोग ही परीक्षा में आवेदन का केवल चार अवसर देकर रुकावट पैदा कर रहा है। मुखर हो रहे छात्रों का सवाल है कि जब यूपीएससी की परीक्षा में शामिल होने के छह अवसर हैं, यूपीपीएससी की पीसीएस परीक्षा में अवसरों की कोई बाध्यता नहीं है तो फिर पीसीएस जे. में ही सबसे कम अवसर क्यों दिए जा रहे हैं?



गौरतलब है कि संघ लोकसेवा आयोग की ओर से कराई जाने वाली आइएएस परीक्षा में उम्र सीमा 21 से 32 साल है और इसमें प्रतियोगियों को छह अवसर मिलते हैं। वहीं, उप्र लोकसेवा आयोग जो पीसीएस की परीक्षा कराता है उसमें आयु सीमा 21 से अधिकतम 40 साल है और इसमें अवसरों की बाध्यता नहीं है, जबकि उप्र न्यायिक सेवा यानी पीसीएस जे. की परीक्षा में आवेदन के लिए आयु सीमा 21 से 35 साल है और इसमें प्रतियोगियों को केवल चार अवसर ही मिलते हैं। देश के अन्य राज्यों में न्यायिक सेवा परीक्षा में आवेदन के लिए अवसर की बाध्यता नहीं है। छात्रों की लड़ाई यही है कि न्यायिक सेवा में अवसरों की बाध्यता क्यों है, जबकि उप्र लोकसेवा आयोग आगामी वर्ष में होने वाली परीक्षाओं में यूपीएससी के पैटर्न को अपनाने की बात कह रहा है। आयोग का घेराव करने वाले न्यायिक सेवा के प्रतियोगियों का मामला अब प्रदेश के अन्य लॉ कालेजों तक भी पहुंच गया है। आयोग का कहना है कि शासन से जो भी निर्णय होंगे उस पर अमल होगा।


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